Sunday, November 9, 2014

मंथन
सूरज पी गया है या समुद्र निगल गया है;
यहाँ जमीन कहाँ है' दिखाई नही देती.

चारों ओर एक संनाटा है' सकून है
अब किसी की चीख सुनाई नही देती.

ये शायद कुदरत का आखरी नजारा है:
यहाँ से आगे'साथ आंख की बिनाई नही देती.

सूरज तो समुद्र में डूबने को तैयार है;
कयू  ये लहरें बढकर अपनी कलाई नही देती.

ये समुद्र है पानी खारा है इसका,
पयास की गहराई इसकी दिखाई नही देती.

अब मरने का इरादा किसी औऱ दिन,
कौन कहता है मौत जिंदगी को बधाई नही देती.

हर लहर पर तेरा नाम लिख देता हूं;
पर पानी पर लिखाई दिखाई नही देती.

यहाँ से लौटा भी तो किधर जाऊंगा,
जिंदगी अब मुझे सदाएं नही देती.

मुददतें हुईं घर की याद आए,
पर मां बचचों को बददुआएं नही देती.

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