Saturday, October 18, 2014

इन्तज़ार

Intezar ;fun या फन'

सालो बाद उनसे मुलाकात हो गई;
जिन्दगी कैसा इतफाक हो गई॥

उनके चेहरे के आते जाते रंगों को देखकर;
मेरी उनसे पूरी बात हो गई॥

हैरान वो इस बात पर है;
जिस मोड पर मुझे छोडा था;
वहीं पर फिर मुलाकात हो गई॥

तूने कब कहा था इनतज़ार करने को;
ना जाने ये इनतजारी;
कैसे मेरी आदत में शुमार हो गई॥

इस पेड़ को जरा गौर से देख ;
यही से तेरी मजबूरी ;
हमारे बीच की दीवार हो गई॥

हमें तो खैर इनतज़ार करना था;
पर तेरे बगैर जिन्दगी बीमार हो गई॥

कुछ तेरे गम कुछ जहाँ के;
कुल मिलाकर जिन्दगी पार हो गई॥

अब के बिछड़े तो फिर शायद हि मिले;
जिन्दगी अब सासों से लाचार हो गई॥

अब आ ही गए हो तो शमा भी जला दो:
तुम्हारे बगैर जिन्दगी जैसे मजार हो गई॥

No comments:

Post a Comment